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शिवमहापुराण कथा में सजी सती की तपस्या और ज्योतिर्लिंग की महिमा

श्री गिरी बापू की अमृतवाणी में सजी शिव-सती विवाह कथा

आनंद गुप्ता जिला संवाददाता

दिव्य कथा में गूंजी सती के त्याग से सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा तक की गाथा

मुंगेली /अंतर्राष्ट्रीय शिवमहापुराण कथा वाचक श्री गिरी बापू की 811 वी कथा का 8 वा दिवस जिसका मुख्य यजमान मिथिलेश केसरवानी एवं कनक केसरवानी और पूरा केशरवानी परिवार द्वारा आयोजित इस कथा में आज शिव सती विवाह का सुन्दर वर्णन किया गया, सभी देवताओं द्वारा कैलाश में महादेव माता सती का स्वागत किया, उसके बाद महादेव सती कुम्भज ऋषि के यहां कथा सुनने जाते और महेश जी को कथा सुनकर बहुत सुख मिलता है, वक्ता को अवसर श्रोता देता है,जीवन में सुखी वही है जो महादेव को भजता है, जो अपना भार महादेव को चढ़ाता है वे ही भार रहित होते है, उसके बाद दक्ष जी यज्ञ का आयोजन करते हैं सभी ऋषि मुनि साधु देवताओं को निमंत्रण भेजता है पर महादेव को नहीं भेजता, सती माता पूछती है कि यह सभी देवता कहां जा रहे हैं,तब महादेव कहते हैं कि तुम्हारे पिता दक्ष यज्ञ कर रहे हैं , तब सती महादेव के मना करने के बाद भी अपने पिता के यहां चली जाती है और वहां जाकर उसका इतना अपमान होता है कि वह वही अपना देह त्याग देती हैं, तब महादेव को पता चलता है, तब वीरभद्र को भेजते हैं

राजा दक्ष के गला को धड़ से अलग कर देता है,फिर महादेव माता सती को लेकर हिमालय की ओर जाता है, तब देवता के कहने पर विष्णु जी सती के शरीर को चक्र के माध्यम से कई भाग में करते है, वही शक्ति पीठ बनता है, उसके बाद महादेव समाधि में चले जाते है काम देव को भस्म,फिर कामेश्वर महादेव के रूप पार्वती का जन्म, मैना यहां पार्वती विवाह ,पुत्र कार्तिक का जन्म,गणेश जी का जन्म ,नारद जी ने मैना को पूर्व जन्म का ज्ञान दिया, चन्द्र को दक्ष ने श्राप दिया, छय रोग के लिए,फिर नारद जी ने पार्थिव शिवलिंग 10 लाख सोमनाथ में जाकर करने को कहा, आगे 12 ज्योतिर्लिंग में पहला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ की मंगल स्वरों में कही।

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